चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (CLW): भारतीय रेलवे की शान

July 2, 2025, 1:27 PM
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चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (CLW): भारतीय रेलवे की शान

चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (CLW) भारतीय रेलवे के लिए विद्युत लोकोमोटिव (Electric Locomotives) बनाने वाली देश की प्रमुख और सबसे बड़ी इकाई है। यह पश्चिम बंगाल के चित्तरंजन कस्बे में स्थित है, जो झारखंड की सीमा से लगा हुआ है। आसनसोल से लगभग 32 किलोमीटर और कोलकाता से करीब 237 किलोमीटर की दूरी पर फैला यह विशाल कारखाना भारतीय औद्योगिक आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।

इतिहास की शुरुआत: एक सपना जो साकार हुआ

भारत के योजनाकारों ने आज़ादी से पहले ही एक स्वदेशी लोकोमोटिव निर्माण कारखाने का सपना देखा था। 1930 के दशक में हम्फ्रीज़ और श्रीनिवासन नामक समिति को यह जांचने का काम सौंपा गया कि देश में लोकोमोटिव निर्माण इकाई बनाना संभव और आर्थिक रूप से व्यावहारिक है या नहीं।


शुरुआती योजना पश्चिम बंगाल के कंचरापाड़ा के पास चाँदमारी में कारखाना लगाने की थी। लेकिन विभाजन के कारण यह योजना बदलनी पड़ी और दिसंबर 1947 में रेलवे बोर्ड ने चित्तरंजन के पास मिहिजाम में इसका स्थान तय किया।

9 जनवरी 1948 को इस इलाके का सर्वेक्षण शुरू हुआ। यहां की चट्टानी मिट्टी भारी ढांचों की मजबूत नींव के लिए उपयुक्त थी और ढलानयुक्त भूभाग ने जलनिकासी की समस्या भी हल कर दी। दामोदर घाटी निगम की योजनाओं से आसपास हाइड्रो और थर्मल पावर स्टेशन बनने वाले थे, जिससे कारखाने को पर्याप्त बिजली की गारंटी भी मिली।

स्थापना और नामकरण

शुरुआत में इसका नाम “लोको बिल्डिंग वर्क्स” रखा गया और इसका लक्ष्य हर साल 120 औसत आकार के स्टीम लोकोमोटिव और 50 अतिरिक्त बॉयलर बनाना था। 26 जनवरी 1950 को यहां स्टीम लोको का उत्पादन शुरू हुआ।

1 नवंबर 1950 को भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पहले स्टीम लोकोमोटिव को राष्ट्र को समर्पित किया। इसी दिन इसका नाम बदलकर देशभक्त देशबंधु चित्तरंजन दास के सम्मान में “चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स” रखा गया।

शुरू से ही CLW ने भारतीय रेलवे की बढ़ती और बदलती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए आधुनिक डिज़ाइनों और तकनीकों को अपनाया और अपने लोकोमोटिव की खींचने की क्षमता और गति दोनों को बेहतर किया।

कारखाने का विस्तार और स्थिति

जहां आज CLW खड़ा है, वहां पहले कई छोटे गांव थे। आज यह पूरा परिसर लगभग 18.34 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है जिसमें मुख्य वर्कशॉप, सहायक कार्यशालाएं, आवासीय कॉलोनियां और हरे-भरे इलाके शामिल हैं।

CLW का स्टोर्स पर्चेज ऑफिस कोलकाता में है और निरीक्षण सेल दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरु में मौजूद हैं।

उत्पादन यात्रा – स्टीम से इलेक्ट्रिक तक

  • स्टीम लोकोमोटिव उत्पादन (1950–1973/74): CLW ने 5 प्रकार के 2351 स्टीम लोकोमोटिव बनाए।

  • डीजल हाइड्रॉलिक लोकोमोटिव (1968–1993/94): 7 प्रकार के 842 डीजल हाइड्रॉलिक लोकोमोटिव बनाए गए।

  • विद्युत लोकोमोटिव:

    • उत्पादन की शुरुआत 1961 में हुई।

    • 14 अक्टूबर 1961 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने पहले 1500 V DC लोको “LOKMANYA” का उद्घाटन किया।

    • 16 नवम्बर 1963 को 25 kV AC/DC लोको का उत्पादन शुरू हुआ।

    • पहला 25 kV AC मालवाहक लोको “BIDHAN” (WAG-1) 2840 HP क्षमता और 80 किमी/घंटा की गति वाला था।

    • मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों के लिए 25 kV AC/1500 V DC AC/DC लोको WCAM-1 भी बनाया गया, जो पश्चिम रेलवे पर BRC से BCT के बीच चला।

तकनीकी उपलब्धियां

CLW विकासशील देशों में पहला उत्पादन इकाई बना जिसने अत्याधुनिक 3-फेज GTO थाइरिस्टर नियंत्रित इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव बनाया।

  • 6000 HP क्षमता वाला पहला स्वदेशी मालवाहक इलेक्ट्रिक लोको “नवयुग” 14 नवम्बर 1998 को तैयार हुआ।

  • 2000-01 में 3-फेज पैसेंजर लोकोमोटिव WAP-5 “नवोदित” तैयार किया गया, जिसकी सेवा गति 160 किमी/घंटा और संभावित गति 200 किमी/घंटा तक है।

तीन-फेज लोकोमोटिव के निर्माण में लागत कम करने और स्वदेशीकरण पर भी CLW ने विशेष ध्यान दिया। विदेशी तकनीक से बने लोकोमोटिव की कीमत लगभग 35 करोड़ रुपये थी, जिसे घटाकर लगभग 10.42 करोड़ रुपये तक लाया गया है। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ेगा, इसकी कीमत और कम होने की उम्मीद है।

सहायक उत्पादन और सुविधाएं

  • DC ट्रैक्शन मोटर और कंट्रोल इक्विपमेंट का उत्पादन अप्रैल 1967 में शुरू हुआ।

  • 1962-63 में स्टील फाउंड्री स्थापित की गई, जहां कास्ट स्टील लोको पार्ट्स बनाए जाते हैं।

  • व्हील सेट्स की मशीनिंग और असेंबली, बोगियों का निर्माण और मशीनिंग भी यहीं होती है।

  • आधुनिक CNC मशीनें, प्लाज्मा कटिंग मशीनें और इनर्ट गैस वेल्डिंग जैसी उन्नत तकनीकें मौजूद हैं।

प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण के लिए प्रतिबद्धता

CLW परिसर के उत्तरी हिस्से से अजय नदी बहती है। यहां हरियाली से घिरे कार्यशालाएं, कार्यालय और आवासीय क्षेत्र हैं। बीच-बीच में जलाशय भी हैं, जो प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करते हैं और समृद्ध वनस्पति और जीव-जंतु जीवन का घर हैं।

CLW प्रशासन ने पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। 1996 में 90,000 पौधे और 2005 में 50,000 पौधे लगाए गए। कर्मचारियों को नियमित रूप से पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया जाता है।

इन प्रयासों को 2006 में विश्व पर्यावरण फाउंडेशन द्वारा “गोल्डन पीकॉक अवॉर्ड फॉर एनवायरनमेंट मैनेजमेंट” देकर सम्मानित किया गया।

हाल की ऐतिहासिक उपलब्धियां

CLW ने हाल के वर्षों में अपने उत्पादन की गति और गुणवत्ता दोनों में जबरदस्त वृद्धि की है:

✅ वित्त वर्ष 2023-24 में – 580 लोकोमोटिव बनाए गए, जो उस समय तक का सबसे बड़ा वार्षिक उत्पादन रिकॉर्ड था।
✅ वित्त वर्ष 2024-25 में – 700 लोकोमोटिव बनाए गए, जो अब तक का सर्वोच्च वार्षिक उत्पादन है (30 मार्च 2025 तक)।
✅ CLW की इलेक्ट्रिकल लोको असेम्बली एंड एन्सिलरी यूनिट (ELAAU), डानकुनी ने भी 2024-25 में 150 इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव तैयार किए (24 मार्च 2025 तक)।
✅ वित्त वर्ष 2024-25 में 50 कार्य दिवसों में 100 लोकोमोटिव बनाने का नया रिकॉर्ड भी बनाया। 100वां लोकोमोटिव 30 मई 2024 को तैयार हुआ।

निष्कर्ष

चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स केवल एक कारखाना नहीं है, यह भारतीय रेलवे के आत्मनिर्भर सपने का मूर्त रूप है। आज यह देश का प्रमुख विद्युत लोकोमोटिव निर्माता है, जिसने तकनीकी प्रगति, पर्यावरण सुरक्षा और उत्पादन क्षमता के क्षेत्र में कई रिकॉर्ड बनाए हैं। CLW न केवल भारत की रेल पटरियों को ताकत देता है, बल्कि भारत की औद्योगिक विरासत और नवाचार का भी प्रतीक है।

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